'सामाजिक समरसता' या 'समता' की अनुभूति बन्धु भाव से ही संभव - रमेश पतंगे

सामाजिक समरसता या समता की अनुभूति बन्धु भाव से ही सम्भव है, ये उद्गार राष्ट्रीय चेतना जागरण मंच उदयपुर द्वारा ३० अगस्त २०१४, शनिवार सायं ६:०० बजे, प्रताप सभागार, विद्या निकेतन विद्यालय, हिरण मगरी, सेक्टर ४ में  “सामजिक समरसता”  विषय पर आयोजित संगोष्ठी के मुख्या वक्ता - समरसता अध्ययन केंद्र दिल्ली के निदेशक, एवं हिंदुस्तान प्रकाशन संस्थान से निकलने वाली विवेक साप्ताहिक के प्रधान संपादक मुम्बई निवासी श्री रमेश पतंगे ने व्यक्त किये, कार्यक्रम की अध्यक्षता पायोनियर शिक्षणसमूह उदयपुर के अध्यक्ष श्री एन.के. गुप्ता ने की, मंच पर आपके साथ राष्ट्रीय चेतना जागरण मंच उदयपुर के संयोजक डॉ. परमेन्द्र दशोरा उपस्तिथ थे |


  कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्यवक्ता एवं अतिथियों द्वारा भारत माता एवं माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ हुआ, मंचासीनो का परिचय मंच के डॉ. कौशल शर्मा ने करवाया, कैलाश जी प्रजापत के काव्य गीत के पश्चात मुख्य वक्ता श्री पतंगे ने विचार प्रकट करते हुए कहा की 


सामाजिक समरसता या समता की अनुभूति बन्धु भाव से ही संभव, परस्पर एकत्व की अनुभूति ही ‘बन्धुता’ , यह किसी कानून द्वारा प्राप्त करना संभव नहीं | उन्होंने बताया की, बाबा साहब अम्बेडकर ने संविधान सभा को संबोधित करते हुए कहा था – “हम भारत वासी सगे भाई हैं, यह भावना पैदा करनी चाहिये, यही स्वतंत्रता एवं समता की गारंटी है” | परस्पर बंधुता की भावना ही ‘समरसता’ है, इस भावना के बिना हम कभी भी एक राष्ट्र के रूप में खड़े नहीं हो सकते |



उन्होंने हिन्दू तत्वज्ञान, महाभारत, गीता, गौतम बुद्ध, रैदास, के प्रसंगों को उद्धृत करते हुए समझाया की परस्पर जाति, समाज, रंग, व्यवस्था, का भेदाभेद रखकर भारत कभी भी उन्नति नहीं कर सकता |
 १५० वर्ष पूर्व दलित उत्पीड़न के जो कारण संमाज में विद्यमान थे, आज भी उन्ही विषयों को लेकर उत्पीडन जारी है, विवाह में घोड़ी पर नहीं बैठने देना, अच्छे कपडे नहीं पहनने देना इत्यादि, समाज की यही दुर्दशा देखकर विवेकानंद जी ने केरल भ्रमण करते हुए कहा था मैं किस पागलखाने में आ गया हूँ|



 विवेकानंद ने कहा था – भारत गरीब की झुग्गी झोपड़ी में, लोहे की भट्टी में, मजदूर के पसीने में, किसान के हल में बसता है| श्री पतंगे ने बताया की यदि हमें समाज को सशक्त, देश को बलवान, २१ वी सदी की दुनिया का सिरमौर भारत बनाना है, तो फिर देश के सामान्य व्यक्ति की दशा को सुधारते हुए उसे अपना भाई समझ कर अपने साथ लेकर, समता एवं समरसता की सूत्र में बाँधकर साथ लेना होगा, यही इस देश के विकास की सच्ची गारंटी होगी, इसके बिना उन्नति असंभव है |  



 कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री एन. के. गुप्ता ने छोटे-छोटे तिनको के एक विशिष्ट क्रम में परस्पर आबद्ध होकर मजबूत रस्सी बनने की बात बताकर समाजिक समरसता को देश व समाज की उन्नति के लिए आज के समय की महत्ती आवश्यकता बताया | कार्यक्रम के अंत में मंच के संयोजक डॉ.परमेन्द्र दशोरा ने मुख्य वक्ता, अध्यक्ष, एवं आगंतुक श्रोताओं का आभार प्रकट किया, कार्यक्रम का सञ्चालन विधि महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. सुरेन्द्र जाखड़ ने किया,  कल्याण मंत्र के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ | 




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