“ स्वयं अच्छा बनकर, दुनिया को अच्छा बनाने की क्षमता भारत में है |" - इंदुमती जी काटदरे
वि.स.के.उदयपुर-  जयदेव पाठक जनसेवा न्यास द्वारा प्रदेश स्तरीय सप्तम “स्वर्गीय जयदेव पाठक स्मृति व्याख्यान” का आयोजन, ५ सितम्बर २०१४, सायं ५:०० बजे से विद्या निकेतन विद्यालय हिरणमगरी से. ४ उदयपुर (राज.) में किया गया |
       कार्यक्रम में मुख्य वक्ता माननीया इंदुमती काटदरे (मंत्री, पुनरुत्थान ट्रस्ट एवं संयोजक पुनरुत्थान विद्यापीठ, अहमदाबाद ),  अध्यक्ष- माननीय यशवंतसिंह जी शक्तावत (कार्य.अध्यक्ष, विद्या प्रचारिणी सभा, उदयपुर) थे | मंच पर विद्याभारती राजस्थान के सचिव एवं मा.शिक्षा बोर्ड अजमेर के पूर्व सचिव श्री भरतराम कुम्हार, वि.भा. चित्तौड़ प्रान्तीय अध्यक्ष श्री बी.एल.चौधरी, वि.भा.राजस्थान के अध्यक्ष श्री मनोहरलाल कालरा उपस्थित थे |  
       परिचय एवं स्वागत के बाद स्व. जयदेव जी के जीवन का परिचय एवं कार्यक्रम की प्रस्तावना विद्याभारती राजस्थान के संगठन मंत्री श्री शिवप्रसाद जी ने रखी | 
       मुख्यवक्ता माननीया इंदुमती जी ने विषय पर बोलते हुए कहा की भौतिकवाद ने हम सबको मन का गुलाम बना दिया है, बाहरी चकाचौंध और भौतिकता को ही हमने विकास का मापदण्ड मान लिया है, समाज में व्यक्ति के जीवन में अभद्रता बढ़ रही है, इससे परावृत होना कठिन हो रहा है, बहुत भौतिक विकास होने के बाद भी व्यक्ति के जीवन में दारिद्र्य बढ़ रहा है, दुनिया के ५०% से अधिक लोगों को दोनों समय भोजन नहीं मिल पा रहा है, अनार्तनियता (परस्पर कोई एक दुसरे की चिन्ता नहीं करना, दुसरे से कोई लेना देना नही, हर व्यक्ति को अपनी चिन्ता स्वयं को ही करनी पड रही है) का व्यवहार बढ़ने की कारण सम्पूर्ण व्यवहार से श्रद्धा एवं विश्वास समाप्त हो रहा है | इन पांच समस्याओं से भारत सहित सम्पूर्ण विश्व संकटग्रस्त हो रहा है |
       इन विश्व संकटों के निवारण का मांर्ग “ स्वयं अच्छा बनकर, दुनिया को अच्छा बनाने में है ” और विश्व में यह जिम्मेदारी निभाने की योग्यता भारत में है, भारत जो विकृत शिक्षा के कारण से अभारतीय हो गया है उसे पुनः अभारतीय से भारतीय बनाने का माध्यम भी शिक्षा ही बनेगी | स्वाभिमान, संस्कार, आत्मगौरव का भाव जगाकर श्रद्धा, शील, विनय, ब्रहमचर्य, आत्म संयम इत्यादि गुणों से युक्त बालक निर्माण करने में सक्षम शिक्षा से उत्पन्न संस्कारो के सिंचन का उत्तर दायित्व भी आज शिक्षक को ग्रहण कर कार्य करने की आवश्यकता है |
       विषय, अंक, रेंक इत्यादि बातों को एक बार छोड़ कर, बुद्धि - सद्बुद्धि हो रही है या नहीं ? इस बात की और ध्यान देकर, आत्ममंथन कर, शिक्षा में बौद्धिक, आत्मिक आनन्द अनुभव करवाने की आज आवश्यकता है |
       “हमको हमारे जैसा बनना है|” , सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करने की संभावनाएं भारत में है, हमें स्वयं यह जानने की आवश्यकता है, इस दिशा में प्रयत्न कर शिक्षक अपनी भूमिका निभाये|
        कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री यशवंतसिंह जी शक्तावत ने कहा की – शिक्षा में पाश्चात्यकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण हम अपने मूल संस्कारों से दूर होते चले जा रहे है, शिक्षक दिवस पर राधाकृष्णन जी के जीवन से प्रेरणा प्राप्त कर इसे ठीक करने का दायित्व शिक्षक का है |
  कार्यक्रम के मध्य में विद्याभारती राजस्थान के १७ जिलों के ९ श्रेष्ठ प्रधानाचार्यों एवं ९ श्रेष्ठ आचार्यों को, शाल, श्रीफल, उपरना, एवं ५१००/- नकद देकर पुरस्कृत किया गया| साथ ही अखिल भारतीय खेलकूद प्रतियोगिताओं के विजेताओं को भी पुरस्कार प्रदान किये गये |
  कार्यक्रम का सञ्चालन व्याख्यानमाला के संयोजक श्री सुरेन्द्र सिंह राव ने किया, प्रान्तीय अध्यक्ष श्री बी.एल.चौधरी द्वारा अतिथियों, आगंतुको, सभी सहयोगियों का आभार प्रकट करने के बाद वन्देमातरम के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ |  
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