राणा पूंजा वर्तमान सन्दर्भो में अधिक प्रासंगिक - डाॅ. दशोरा


           वि.स.के.उदयपुर, 5 अक्टू. - ‘‘ एक सौ पच्चीस करोड़ भारतीयों की एकता की बात तभी सुनिश्चित होगी जब हम राणा पूंजा के आदर्शों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करेंगें ।’’ आज जब देश की सीमाओं पर शत्रुओं का खतरा है, देश में विभिन्न प्रकार की भ्रान्तियाॅं फैलाकर वनवासी समाज को अलग-थलग करने की कुचेष्टा की जा रही है । वनवासियों के लिए एक नवीन शब्द ‘ट्राइबल’ का आविष्कार कर आदिवासी समाज में यह भ्रान्तियाॅं पैदा करने की कोशिश की जा रही है कि वह शेष समाज से अलग है । ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो गया है कि राणा पूंजा को हमारे पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनाया जावे । उपर्युक्त विचार प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं पूर्व राजस्थान लोेक सेवा आयोग के सदस्य डाॅ. परमेन्द्र दशोरा ने राणा पूंजा जयन्ती के अवसर पर व्यक्त किए । डाॅ. दशोरा विश्व संवाद केन्द्र द्वारा आयोज्य संगोष्ठी ‘‘राणा पूंजा वर्तमान सन्दर्भो में ’’ पर बोल रहे थे ।
संगोष्ठी में भाग लेते हुए विश्व संवाद केन्द्र प्रभारी कमल रोहिला ने कहा कि समाज को संगठित कर आगे बढाने की आवश्यकता है । महाराजा गंगासिह विश्वविद्यालय के अंगे्रजी विभाग में कार्यरत प्रो. (डाॅ.) सुरेश कुमार अग्रवाल ने कहा - ‘‘राणा पूंजा सामाजिक समरसता के सूत्रधार थे । उन्होने बखूबी समझ लिया था कि किसी भी समाज को संगठित करने के लिए सामाजिक समानता अति आवश्यक है । सामाजिक समानता का आघार सामाजिक समरसता ही है । राणा पूंजा, गोविन्द गुरू जैसे महापुरूषों को हमें हमारे पाठ्यक्रमांे में उचित स्थान देना चाहिए ।’’
परिचर्चा में भाग लेते हुए डाॅ. सुरेन्द्र जाखड़ ने कहा कि ‘‘राजीव गाॅधी जनजातीय विश्वविद्यालय का नामकरण राणा पूंजा के नाम पर किया जाना चाहिए । राजीव गाॅधी विश्वविद्यालय का एक विशिष्ट चरित्र विकसित हो, जैसे प्रयास किये जाने कि आवश्यकता है ।’’
संगोष्ठी के समापन सत्र में विश्व संवाद केन्द्र के विनोद ने कहा कि ‘‘ हमे समग्रता से भाषा का विकास करना होगा - समग्र विकास की परिकल्पना वनवासी समाज के बिना अधूरी है । हम सब मूलतः आदिवासी समाज के सदस्य है ।’’ संगोष्ठी का प्रारम्भ वन्देमातरम् एवं समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ । संगोष्ठी के अन्त मे धन्यवाद ज्ञापन श्री कमल रोहिला ने किया । 

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